वह दुबली-पतली प्यारी-सी लड़की थी। उसकी आँखें गाय जैसी थीं। उसका नाम सलोनी
था। वह बहुत धीरे-धीरे चलती थी। धीरे-धीरे बोलती थी। जब वह पहली बार क्लास में
आई तो हम सारे बच्चे उससे दोस्ती करने गए थे। हम सब एक छोटे शहर में रहते थे।
वह दिल्ली से आई थी। उसके पापा का ट्रांसफर इस शहर में हो गया था। हम सबको
लगता था कि वह बड़े शहर से आई है, तो पढ़ने में बहुत अच्छी होगी।
मैंने पहले दिन उससे ढेर सारी बातें की। वह पीछे की बेंच पर बैठती थी। मैं भी
उसके साथ बैठी थी। पर कुछ दिनों बाद मैंने देखा की उसे पहाड़े याद नहीं होते
थे। अक्सर वह गुणा-भाग में गलती करती थी। गणित वाली टीचर उससे गुस्सा हो जाती
थीं। उसे अँग्रेजी में कविताएँ भी याद नहीं होती थीं। परीक्षाओं में उसका
हमेशा 'बी' ग्रेड आता था। सारे बच्चे आपस में उसे 'भोंदू' कहकर चिढ़ाने लगे थे।
वह सबकी बातें सुन लेती थी, फिर भी कुछ नहीं कहती थी।
कोई भी बच्चा जब कभी अपनी पेन लाना भूल जाता था, तो सलोनी मुस्कुराते हुए अपना
पेन लिखने के लिए दे देती थी।
मैंने उसके साथ बैठना छोड़ दिया। मैं क्लास में फर्स्ट आती थी। मुझे एक भोंदू
लड़की से दोस्ती या बातें करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था। घर में भी सब यही
कहते थे कि तेज बच्चों के साथ बैठना चाहिए और उन्हीं से दोस्ती रखनी चाहिए।
भोंदू बच्चों से दोस्ती रखने पर हम भी भोंदू हो जाएँगे।
सलोनी ने कई बार मुझसे बात करने की कोशिश की पर मैं मुँह फेर कर चल देती थी।
वो उदास हो जाती पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। जब वो क्लास में आती, उसकी
नजर मुझ पर पड़ती। वो जैसे ही थोड़ा पास आती मैं अपने पास बैठी पूजा से कहती -
"चलो प्ले ग्राउंड में खेलने चलते हैं।" मैं पूजा के साथ खेलने चली जाती।
सलोनी चुपचाप अपनी सीट पर बैठ जाती।
प्रतियोगिताओं का मौसम शुरू हो गया था। सबसे पहले चित्रकला प्रतियोगिता होने
वाली थी। यह अंतर-विद्यालय प्रतियोगिता थी। चित्रकला का पुरस्कार हर बार दूसरे
स्कूल के बच्चे ले जाते थे। हमारी क्लास से बहुत से बच्चों ने प्रतियोगिता में
हिस्सा लिया। सलोनी ने भी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। हम सब उस पर हँस रहे
थे। हमें लगता था कि वो इस प्रतियोगिता में भी पीछे रह जाएगी।
परंतु प्रतियोगिता के दिन सभी सलोनी के चित्र की प्रशंसा कर रहे थे। सलोनी ने
प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया। इस वर्ष चित्रकला की ट्राफी हमारे
स्कूल में आई। सब खुश थे।
अब चित्रकला वाली टीचर सलोनी को बहुत पसंद करने लगी थीं। कुछ बच्चे भी सलोनी
से बातें करने लगे थे। नए साल में पहली जनवरी को सलोनी ने सारे टीचर्स को अपने
हाथ से ग्रीटिंग कार्ड बना कर दिया। उसने मुझे भी कार्ड दिया। मैंने कार्ड
लेकर उसे बस धन्यवाद कहा और चली गई। वह उदास हो गई।
स्कूल में प्रोजेक्ट शुरू हो गए थे। सारे बच्चों को चार्ट पेपर्स पर विषय से
संबंधित चित्र, सारणी वगैरह बना कर जमा करना था। मैं साइकिल से चार्ट पेपर
खरीदने बाजार जा रही थी। अचानक एक पत्थर पहिए के सामने आ गया। मेरा संतुलन
बिगड़ गया। मैं साइकिल समेत गिर पड़ी।
मेरा दायाँ हाथ टूट गया। जब मैं दो दिनों तक स्कूल नहीं गई तो पूजा मुझसे
मिलने आई। पूजा ने बताया के सारे बच्चों ने अपना प्रोजेक्ट जमा कर दिया है।
परसों प्रोजेक्ट जमा करने की आखिरी तारीख है। मेरी आँखों में आँसू आ गए।
वार्षिक परीक्षा में प्रोजेक्ट्स के नंबर भी जुड़ने थे।
दूसरे दिन शाम को माँ ने बताया कि मेरी कोई सहेली मुझसे मिलने आई है। "अभी कल
ही तो पूजा आई थी, अब कौन हो सकता है" यह सोचती मैं बाहर गई। सलोनी अपने पापा
के साथ आई थी। उसके पापा मेरे पापा से बातें कर रहे थे।
मैं सलोनी को लेकर अपने कमरे में आ गई। उसने मेरे हाथ के बारे में पूछा। मैंने
पूरी घटना उसे सुना दी। मैंने सलोनी से पूछा - "क्या तुम्हे मेरे घर का पता
मालूम था?" उसे, पूजा ने मेरे घर का पता बताया था। पूजा ने ही उसे मेरा हाथ
टूटने के बारे में भी बताया था।
सलोनी ढेर सारे चार्ट पेपर और रंग लेकर आई थी। मुझसे मेरे प्रोजेक्ट्स का विषय
पूछ कर वह काफी देर तक मेरे साथ बैठी। मेरे प्रोजेक्ट्स बनाती रही। मुझे अपने
व्यवहार पर शर्मिंदगी हो रही थी, जो मैंने उसके साथ किया था।
उसने मेरे प्रोजेक्ट्स पूरे कर दिए। सलोनी ने कहा कि वो कल स्कूल में मेरे
प्रोजेक्ट्स जमा कर देगी और क्लास में पढ़ाए जाने वाले पाठ मुझे घर पर आ कर बता
भी देगी। मैंने कहा - 'सलोनी तुम बहुत अच्छी हो!'
सलोनी ने मुस्कुरा कर कहा - 'तुम भी' - "क्या तुम मुझे चित्र बनाना और रंग
भरना सिखा दोगी?" मैंने पूछा। ''बिलकुल... और क्या तुम गुणा-भाग सीखने में
मेरी मदद करोगी?'' सलोनी ने हँसते हुए कहा।
मैंने सहमति में अपना सिर हिलाया। फिर हम दोनों हँसने लगे।
अब हम बहुत अच्छे दोस्त हैं।